जाकिर हुसैन: तबला के महान उस्ताद का निधन हो गया , उनका संगीत यात्रा और उपलब्धियां

  


जाकिर हुसैन, तबला के महान उस्ताद और संगीतकार, का रविवार, 15 दिसंबर 2024 को 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। हुसैन को दिल से संबंधित समस्याओं के कारण अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया था।


सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने जाकिर हुसैन के निधन की पुष्टि की है। हालांकि, उनके परिवार, अस्पताल या सैन फ्रांसिस्को स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है।


उनकी प्रबंधक निर्मला बचानी ने समाचार एजेंसी को बताया, "उन्हें पिछले दो सप्ताह से दिल की समस्या के कारण सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था।" बचानी के अनुसार, जाकिर हुसैन लंबे समय से रक्तचाप की समस्याओं से भी जूझ रहे थे।


प्रारंभिक जीवन और विकास


जाकिर हुसैन, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की धड़कन के रूप में जाने जाते हैं, को तबले के सबसे महान कलाकारों में से एक माना जाता है। उनका जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई, भारत में हुआ था। उनके पिता, मशहूर तबला उस्ताद अल्ला रक्खा, ने उन्हें संगीत की विरासत सौंपी, जिसे जाकिर ने नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।


बचपन से ही जाकिर हुसैन ने अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उनके पिता के कठोर और स्नेहपूर्ण मार्गदर्शन में उन्होंने तबला बजाने की बारीकियों को सीखा। उनकी लगन और प्रतिभा बचपन से ही झलकती थी, और केवल 12 साल की उम्र में वे संगीत कार्यक्रमों में प्रदर्शन करने लगे थे।


संगीत यात्रा और उपलब्धियां


जाकिर हुसैन का करियर उनकी अद्वितीय कला और बहुमुखी प्रतिभा का प्रतीक है। उन्होंने पंडित रवि शंकर और उस्ताद अली अकबर खान जैसे भारत के प्रतिष्ठित शास्त्रीय संगीतकारों के साथ प्रदर्शन किया और जॉर्ज हैरिसन, जॉन मैक्लॉघलिन, और यो-यो मा जैसे अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के साथ सहयोग किया।

1970 में, उन्होंने जॉन मैक्लॉघलिन के साथ शक्ति नामक फ्यूजन बैंड की स्थापना की, जिसमें भारतीय शास्त्रीय संगीत और जैज़ का अनोखा मेल हुआ। उन्होंने मास्टर्स ऑफ परकशन भी बनाया, जो भारत की ताल परंपराओं की गहराई को दर्शाता है।

उन्होंने कई फिल्मों और बैले के लिए संगीत तैयार किया, जिसमें मिकी हार्ट के साथ प्लैनेट ड्रम नामक एल्बम शामिल है, जिसे ग्रैमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


पुरस्कार और सम्मान


जाकिर हुसैन को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1988 में पद्म श्री और 2002 में पद्म भूषण से नवाजा गया। 1992 में, उन्होंने प्लैनेट ड्रम के लिए ग्रैमी पुरस्कार जीता, और ऐसा करने वाले पहले भारतीय बने। अन्य सम्मानों में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कालीदास सम्मान, और अमेरिका का प्रतिष्ठित नेशनल हेरिटेज फेलोशिप शामिल हैं।


विरासत


जाकिर हुसैन केवल एक कलाकार ही नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक पुल के निर्माता भी थे। उन्होंने तबले को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई और उसकी बहुमुखी प्रतिभा और सुंदरता को प्रदर्शित किया। भारतीय शास्त्रीय संगीत को संरक्षित और प्रचारित करने के उनके प्रयासों ने नई पीढ़ी के संगीतकारों को प्रेरित किया है।

उनकी करिश्माई प्रस्तुति, रचनात्मक सहयोग, और समर्पित शिक्षण ने तबले को परंपरा और नवाचार दोनों का प्रतीक बना दिया।


जाकिर हुसैन के निधन के साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक युग का अंत हो गया है। उनकी लयबद्ध कला और सांगीतिक योगदान आने वाले समय में भी प्रेरणा देते रहेंगे।


नीचे दिए गए वीडियो में जाकिर हुसैन को तबले पर अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए देखें।




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